राष्ट्रीय

चमत्कार -जिन शब्दों का अर्थ नहीं पता उनमें शायरी हो रही है?

शिब्ली रामपुरी

विशेष संवाददाता, गोल्डन टाइम्स

                      मौजूदा वक्त का यह कड़वा सच है कि आज पता नहीं क्या-क्या हो रहा है और लोग किस-किस तरीके से अपने आप को स्थापित करने में लगे हैं कि बस उनका किसी तरह से नाम हो जाए या फिर वह पैसा कमा लें?
                      कई वर्ष पूर्व यूपी के ज़िला सहारनपुर के गंगोह में एक ऑल इंडिया मुशायरा हुआ था जिसमें देवबंद के एक मशहूर शायर जो उसमें संचालन भी कर रहे थे उन्होंने एक नए शायर का यह कहते हुए परिचय कराया था कि देखिए इनको उर्दू नहीं आती लेकिन यह फिर भी उर्दू में शायरी करते हैं और हैरत की बात यह थी कि वह इस बात को बहुत ही शान से बता रहे थे बड़ी प्रशंसा कर रहे थे उस शायर की.
                      अभी चंद दिन पहले मुंबई में साहित्य जगत का एक बड़ा कार्यक्रम हुआ उसमें एक नामवर शख्सियत शामिल थे और जब मैंने उनसे उनके द्वारा साहित्य जगत में किए गए कार्यों की बात की तो पता लगा कि जिन कुछ शब्दों का वह अपनी साहित्यिक रचना में इस्तेमाल करते हैं उन शब्दों का तो उनको अर्थ भी नहीं मालूम था. अब आप यह सोचिए कि आखिर ऐसा कैसे हो सकता है कि जिन शब्दों का आप अपनी रचना में इस्तेमाल करते हैं उनका अर्थ ही आपको नहीं मालूम तो फिर इसे क्या कहा जाएगा कि आप किसी दूसरे से वह शायरी लिखवाते हैं वह रचना लिखवाते हैं?
                       यही वजह है कि मुझे यह लिखने में कोई गुरेज नहीं है कि साहित्य जगत का स्तर आज इसीलिए गिर रहा है कि जो लोग हकीकत में लगन के साथ शायरी करते हैं दिन-रात शायरी/साहित्य के क्षेत्र में मेहनत करते हैं उनको तो वह जगह नहीं मिल पाती है कि जिसके वह वास्तविक तौर पर हकदार हैं और कई ऐसे लोग बड़े नामवर बने बैठे हैं कि जिनका हाल मैंने लिखा ही है.
                       देखिए अगर आप कुछ गलत लिखते हैं तो कोई बात नहीं है आज कुछ गलत लिख रहे हैं तो कल को आप अच्छा भी लिखेंगे लेकिन जब आप शुरू से यही इरादा करेंगे कि हमें किसी और से लिखवा करके उसे अपने नाम से प्रस्तुत करना है तो फिर साहित्य जगत में एक न एक दिन पता लग ही जाएगा कि आप क्या कर रहे हैं?
                       पत्रकारिता जगत का भी आज कम या ज़्यादा तौर पर कुछ ऐसा ही हाल हो चला है कि वहां भी पता नहीं चलता कौन कहां से क्या लिख रहा है किसकी खबर उठाकर के अपना नाम चिपका रहा है? मुझे पत्रकारिता करते-करते काफी वर्ष हो गए हैं लेकिन आज भी मैं सही से नहीं लिख पाता हूं क्योंकि हकीकत यह है कि पत्रकारिता का मैं आज भी एक छोटा सा स्टूडेंट हूं.

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