बहन भाई के अमर प्रेम का महान पर्व है रक्षाबंधन !
बहन भाई के अमर प्रेम का महान पर्व है रक्षाबंधन !
डा श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट
इस बार रक्षाबंधन के पर्व पर 4 शुभ संयोग बन रहे हैं. इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, रवि योग, शोभन योग और श्रवण नक्षत्र का महासंयोग बन रहा है. इसी दिन सावन का आखिरी सोमवार भी है। ये सब मिलकर इस दिन को बेहद शुभ बना रहे हैं।सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग के प्रभाव वाले समय पर बहन अपने भाई को राखी बांधती हैं तो भाइयों पर आने वाली सारी बलाएं दूर हो सकती हैं।इस योग के प्रभाव से भाई को निरोगी होने का वरदान भी मिलेगाभद्रा के समय में शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। भद्रा काल में राखी बांधना अशुभ माना गया है,18 अगस्त 2024 को रात में भद्राकाल प्रवेश कर रहा है, जो 19 अगस्त को दोपहर 1 बजकर 32 मिनट तक रहेगा।इसके बाद ही आप राखी बांध सकते हैं।राखी बांधने का शुभ मुहूर्त 19 अगस्त को दोपहर 01:32 बजे से लेकर रात 09:07 बजे तक है।
इस साल 19 अगस्त को रक्षाबंधन के दिन भद्रा रहेगी। 19 अगस्त को सूर्योदय से पहले ही भद्रा लग जाएगी जो दोपहर करीब 1 बजकर 29 मिनट तक रहेगी। ऐसे में भद्रा की समाप्ति के बाद ही रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाना चाहिए। 19 अगस्त को राखी दोपहर 1 बजकर 30 मिनट के बाद से लेकर शाम 7 बजे के बीच तक बांधने के लिए सबसे शुभ समय होगा। इस बार शाम 7 तक लगातार चर, लाभ और अमृत का शुभ चौघड़िया का मुहूर्त रहेगा। शास्त्रों के अनुसार रक्षाबंधन का त्योहार श्रावण पूर्णिमा से लेकर कृष्ण जन्माष्टमी तक मनाया जाता है।
इस समय में बहनें अपने भाई को राखी बांध सकती हैं।रक्षाबंधन के दिन सबसे पहले बहन और भाई सुबह स्नान कर लें। इसके बाद साफ-सुथरे कपड़े पहन लें।फिर घर के मंदिर में दीपक जलाएं और सूर्य देवता को जल चढ़ाएं।इसके बाद राखी बांधने की थाली में कुमकुम, अक्षत, रक्षा सूत्र, नारियल, घी का दीपक, रुमाल, एक कलश, कलावा, सुपारी, दही और मिठाई रख लें. इसे मंदिर में भगवान को समर्पित करें.राखी बांधने से पहले एक थाली सजा लें। सबसे पहले थाली में रोली चावल को रखें।इसके बाद आप राखी और मिठाई को रख लें।इस दौरान दिया जलाना न भूलें।अब सबसे पहले भाई को तिलक लगाएं। फिर दाहिने हाथ में राखी बांधें. इस दौरान राखी में तीन गांठ बांधें।मान्यता है कि राखी की इन तीन गांठ का महत्व ब्रह्मा, विष्णु और महेश से होता है।फिर भाई को मिठाई खिलाएं। इसके बाद अपने भाई की आरती उतारते हुए लंबी उम्र, सुखी जीवन और उन्नति की कामना करें।रक्षाबंधन के दिन पर आप अपने भाई की नजर उतारें।सबसे पहले भाई के सिर से 7 बार फिटकरी उतारें. फिर उसे किसी चौराहे पर फेंक दें।माना जाता है कि इससे भाई को लगी नजर का प्रभाव कम हो जाता है।कहा जाता सबसे पहले द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण को राखी बांधी थी।मान्यता है कि कृष्ण भगवान की उंगली सुदर्शन चक्र से कट गई थी. खून बंद करने के लिए द्रौपदी ने अपनी साड़ी से एक टुकड़ा फाड़कर कटे हुए जगह पर बांधा था. उसी वक्त भगवान कृष्ण ने हमेशा द्रौपदी की रक्षा करने का वचन दिया था।कलाई पर रक्षासूत्र या कलावा बांधने से भाग्य में वृद्धि होती है। रक्षाबंधन के दिन बांधी गई राखी को कम से कम जन्माष्टमी तक जरूर बांधे रखना चाहिए। जन्माष्टमी के बाद भी आप राखी बांध सकते हैं लेकिन अगर आपको राखी उतारनी है तो इसको उतारने के बाद कभी भी यहां वहां नहीं फेकनी चाहिए। बल्कि उतारी गई राखी को किसी पवित्र पौधे या पेड़ के पास रख देने चाहिए या फिर इस नदी में भी प्रवाहित करना चाहिए।यह रक्षा सूत्र मन, वचन कर्म की पवित्रता तथा प्रतिज्ञा का सूचक है।रक्षाबंधन का अर्थ ही होता है रक्षा के लिए बंधन। हालांकि बंधन किसी को भी प्रिय नहीं होता है। परन्तु यहां इसका अर्थ यही है कि अपनी उन असूरी प्रवृत्तियों से रक्षा के लिए मर्यादाओं के बंधन में बंधना, जिसके कारण हमें कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वास्तव में यह बंधन नहीं बल्कि स्वतंत्रता है। मनुष्यात्माओं को आसुरी शक्तियों से रक्षा करने तथा दैवी शक्तियों के आह्वान करना ही इस रक्षाबंधन का उद्देश्य है।रक्षा बंधन पर मिठाई देने का अर्थ है जीवन में मीठा बोलना और मिठास बांटना।
उन्होंने इस पवित्र पर्व पर इस संकल्प के साथ रक्षाबंधन का पर्व केवल भाई-बहन तक ही नहीं, बल्कि सर्व लोगों के साथ यह पर्व मनाएं। यूं तो बंधन किसी को अच्छा नहीं लगता है लेकिन, इस रक्षाबंधन के बंधन में सभी बंधना चाहते हैं। जब हम ईश्वर के प्रेम व मर्यादाओं के बंधन में बंध जाते हैं तो विकारों और तमाम प्रकार की बुराइयों के बंधन से मुक्त हो जाते हैं। विकारों से मुक्त होने और अनैतिकता से दूर रहने से स्वतः ही हमारी रक्षा होने लगती है। ऐसे में यही अदृश्य सत्ता परमात्मा की शक्ति है जो अपनी शिक्षाओं के द्वारा ही हमारी रक्षा करते हैं। इसलिए सत्संग प्रतिदिन आवश्यक है।इस दिन की रस्मों का भी आध्यात्मिक रहस्य है कि तिलक आत्मिक स्मृति दिलाता है और गुणग्राही बनकर सर्व के गुणों को देखने की प्रेरणा देता है। मिठाई मीठे बोल व व्यवहार का प्रतीक है। विश्व विकारों को खत्म कर हमें पुण्य के कर्म करने चाहिए ताकि परिवार में एकता बनी रहे। हमें परिवार में रहते हुए चिंता व भय नहीं होता। हमें अपने जीवन की बुराइयों से रक्षा करनी चाहिए। सच्ची आजादी तभी होंगी जब राखी बांधकर मानसिक विकृतियों बुराइयों एवं कुरीतियों से स्वयं की रक्षा का संकल्प लेना प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी होनी चाहिए। व्यक्ति को मनोविकार और बुराइयों व व्यसनों से स्वयं की रक्षाकर अपने को आध्यात्मिक व नैतिक मूल्यों के बंधन में बांधे तभी रक्षाबंधन के पवित्र पर्व की सार्थकता साकार होगी।रक्षाबंधन बहन भाई के अमर प्रेम का प्रतीक है।दोनों का एक दूसरे के प्रति हित चिंतक होना और जब भी आवश्यकता हो ,मदद व रक्षा के लिए तत्पर रहना ही इस रिश्ते में मिठास पैदा करता है। भाई-बहन दोनो को संकल्प करना चाहिए कि परमात्मा इतनी शक्ति दे कि परमात्म अनुभूति के साथ पवित्रता का संकल्प करते हुए हम देव समान बनें ।यही रक्षाबंधन की मूल अवधारणा है। चूंकि हम सभी परमात्मा की संतान हैं और परमात्मा हमारा पिता है। इसी कारण उसकी संतान होने के नाते हम आपस में भाई-भाई या फिर भाई बहन एक दूसरे को मानें और समझें तथा आवश्यकता पड़ने पर एक दूसरे की रक्षा करें इसी संकल्प को बंधन रुप में मानते हुए यह पर्व मनाया जाता है। भाई-बहन का रिश्ता चूंकि सबसे पवित्र और पावन है चाहे बहन हो या भाई दोनों ही एक दूसरे के प्रति शुभ भावना रखते हैं और एक दूसरे की प्रगति चाहते हैं, वह भी बिना किसी स्वार्थ के। हालांकि रक्षाबंधन पर जब बहन भाई को राखी बांधती है तो भाई बदले में उसे उपहार देता है। ऐसा इसलिए है ताकि भाई बहन के बीच प्रेम और सदभाव उत्तरोत्तर बढ़ता रहे और कम से कम एक दिन ऐसा हो जब भाई बहन एक दूसरे से मिलकर खुशी मना सकें। आज भी गांव देहात में पंडित द्वारा अपने यजमानों को रक्षासूत्र यानि राखी बांधने का प्रचलन है। इसके पीछे भी यही अवधरणा है कि पंडित को विद्वान और पवित्र माना जाता है और वह रक्षासूत्र बांधने के पीछे अपने यजमान को बुद्धिमान और पवित्र रहने का संदेश देता है। रक्षाबंधन के पर्व पर जब बहन भाई की कलाई पर राखी बांधती है तो उन्हें विकारों को त्यागने का संकल्प लेना चाहिए। जिसकी शुरूआत प्रति रक्षाबंधन एक विकार को त्यागने के संकल्प के साथ हो सकती है। क्योंकि मनुष्य में व्याप्त विकार एक नहीं अनेक होते हैं। जिनमें काम क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार जहां प्रमुख हैं वहीं ईष्र्या, द्वेष, घृणा जैसे विकार भी मनुष्य की प्रगति में बाधक हैं। सच पूछिए तो रक्षाबंधन है ही पवित्रता का पावन पर्व, जिसमें भाई बहन के पवित्र रिश्ते की रक्षा के लिए रक्षासूत्र बांधने की वर्षों से परम्परा है। इस पर्व के माध्यम से जहां हम अपनी बहनों की सुख समृद्धि और प्रगति की कामना करते हैं वहीं बहन भी अपने भाई की दीर्घायु की कामना के साथ-साथ उसकी उन्नति की प्रार्थना करती हैं। रक्षा बन्धन शब्द से ही इस पर्व के अर्थ का पता चल जाता है।रक्षाबन्धन की वास्तविक शुरूआत इन्द्र की पत्नी शचि द्वारा अपने पति को राखी बांधने से हुर्इ थी।
रानी कर्णावती ने मुगल शासक हुमांयु को सकंट के समय राखी भेजकर उनसे अपनी रक्षा की याचना की थी। हुमायूं ने भी प्रेम और स्नेह की प्रतीक राखी के बधंन को निभाते हुए कण्र्ाावती की रक्षा अपने प्राणों की बाजी लगाकर की थी। इसी तरह रूपनगर की राजकुमारी की राखी की लाज रखने के लिए महाराजा राजसिंह ने मुगल शासक औरंगजेब से लौहा लिया था। इसी दिन अनिष्ट शमन के लिए भगवान श्री कृष्ण का रक्षा बन्धन किया गया था।यानि रक्षा बन्धन का पर्व भावनात्मक रिश्तों को मजबूत करने,भाई बहन में प्यार और विश्वास बढाने तथा एक दूसरे की रक्षा को वचनबद्ध रहने का पर्व है। वही इस पर्व को बुराई छोडने के सकंल्प दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। प्रजापिता ब्रहमाकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय इस पर्व को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाता है। ब्रहमाकुमारी बहनें समाज के शीर्ष पदों पर विराजित महानुभावों से लेकर आमजन तक राखी पर्व का संदेश उन्हें राखी बांधकर देती हैं। वें राखी बांधने के बदले कोई उपहार या नगदी कभी ग्रहण नहीं करती हैं अपितु चाहती हैं कि जिस भाई केो उन्होंने राखी बांधी है वह कम से कम अपने भीतर व्याप्त एक अवगुण का त्याग हमेंशा के लिए करें। तभी यह पर्व सार्थक माना जाता है। इस संस्था में रक्षाबंधन पर्व मनाने की शुरूआत 15 दिन पहले से ही हो जाती है और बाद तक चलती रहती है। ताकि समाज अवगुणों से मुक्त हो और एक स्वर्णिम सद्गुणी समाज की स्थापना हो सके। रक्षाबंधन यानी भाई बहन का त्यौहार। कहा जाता है कि भाई और बहन के रिश्ते से पवित्र दुनिया में कोई भी रिश्ता नहीं होता। इस दिन बहनें अपने भाईयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और भाई जीवनभर उसकी रक्षा का प्रण लेता है।(लेखक आध्यात्मिक चिंतक वरिष्ठ पत्रकार है)
डा0श्रीगोपालनारसन एडवोकेट
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