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मुसलमान -ग़लतफ़हमियां और राजनीतिक नेतृत्व

मुसलमान -ग़लतफ़हमियां और राजनीतिक नेतृत्व

शिब्ली रामपुरी

                        भारत में मुसलमानों के लिए तरक़्क़ी और खुशहाली के बहुत सारे रास्ते हैं और वह उस पर चलकर कामयाब भी हुए हैं और कामयाब हो भी रहे हैं लेकिन पिछले कुछ वक्त से मुसलमानों के सामने कुछ इस तरह के हालात बने हैं कि जिसकी वजह से मुसलमानों की एक बड़ी आबादी खुद को राजनीतिक या आर्थिक तौर पर असहाय महसूस करने लगी है और वह कई तरह की परेशानियों में घिरती नजर आती है.
कई ऐसी घटनाएं हाल के दिनों में विभिन्न जगहों पर मुसलमानों के साथ सामने आई हैं कि जिसमें बहुत सारे मुसलमान यह सोच रहे हैं कि आखिर उनका कसूर क्या है?
ऐसा नहीं है कि किसी भी समाज में बुरे लोग नहीं होते मुस्लिम समाज भी इससे अछूता नहीं है यहां पर भी कुछ ऐसे तत्व होते हैं कि जिनको आप असामाजिक तत्व कह सकते हैं जो कि गलत कामों को अंजाम देते हैं लेकिन किसी एक या दो व्यक्ति के गलत कामों से पूरे समुदाय को जोड़ना पूरी तरह से अन्याय ही कहा जाएगा. ऐसे बहुत से मुसलमान हैं जो अक्सर यह बात कहते हैं कि यदि हमारे समाज में कोई गलत काम करता है तो उसको कानून के दायरे में लाकर सज़ा देनी चाहिए लेकिन कभी-कभी किसी एक के गलत काम की सजा बहुत सारे लोगों को मिल जाती है या फिर किसी एक व्यक्ति के गलत कामों की वजह से पूरे समुदाय को निशाने पर ले लिया जाता है और अनर्गल बयानबाज़ी का दौर शुरू हो जाता है.
दरअसल यह एक कड़वी सच्चाई है कि आज मुसलमान की छवि को इस तरह से पेश किया जाता है कि जैसे सारे मुसलमान जालिम हैं वह सिर्फ ज़ुल्म करते हैं वह हर जुर्म में आगे हैं और वह किसी का भला नहीं कर सकते क्योंकि उनके अंदर जिहालत कूट-कूट कर भरी है इस तरह की बातें अक्सर अब आम हो चली हैं जो दबी या खुली जबान में सामने भी आती रहती हैं और इसकी वजह मुसलमान और उनके धर्म के बारे में फैली गलतफहमियां हैं.
दूसरी वजह यह है कि राजनीतिक तौर पर देश का मुसलमान मजबूत नहीं है और इसी बात का फायदा वह राजनीतिक पार्टियां लंबे वक्त से उठाती आ रही हैं कि जो हर चुनाव में भाजपा का खौफ़ दिखाकर अपना स्वार्थ पूरा करती हैं और यह कहना भी गलत नहीं होगा कि इसमें एक बड़ी संख्या खुद मुस्लिम नेताओं की होती है कि जो चुनाव के समय मुसलमानों को सुनहरे ख़ुवाब दिखाते हैं एवं तरह-तरह के जोशीले नारों से उनके वोट लेकर अपना मकसद पूरा करते हैं लेकिन चुनाव जीतने के बाद वह इस तरफ ध्यान नहीं देते और सिर्फ वह एक बैलेंस बनाकर चलते हैं ताकि अगली बार जब वह चुनावी मैदान में उतरें तो उनको फिर से मुसलमानों का वोट मिल सके.
चुनाव के दौर में चंद मुस्लिम नेताओं को छोड़कर ज्यादातर मुस्लिम नेता ऐसे ऐसे भाषण देते हैं कि मानो चुनाव जीतने के बाद वह मुसलमानों को सभी परेशानियों से सभी दिक्कतों से मुक्ति दिला देंगे लेकिन चुनाव जीतने के बाद उनका रंग रूप सब बदल जाता है. ऐसी राजनीतिक पार्टियों और उनके मुस्लिम नेताओं की वजह से भारतीय जनता पार्टी के सामने मुस्लिम समुदाय को एक तरह से शत्रु के तौर पर पेश करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी जाती है. यह नेता या उनकी राजनीतिक पार्टियां चुनाव जीते या ना जीते लेकिन मुसलमान राजनीतिक तौर पर शिकस्त खा जाता है.
              मुस्लिम समाज की छवि खराब करने में उन लोगों का भी बहुत बड़ा हाथ है कि जो टीवी स्टूडियो में होने वाली डिबेट में जाते हैं और वहां हिंदू मुस्लिम के नाम पर डिबेट में शामिल होकर अनाप-शनाप बोलते हैं क्योंकि अधिकतर डिबेट में जाने वाले लोगों के बारे में यह बात पूरी तरह से सही है कि वह पैसे लेकर वहां पर डिबेट में जाते हैं ऐसे आरोप अक्सर कई मुस्लिम रहनुमा लगा चुके हैं कि डिबेट में जाने वालों को पैसा दिया जाता है और कहा जाता है कि तुमको यह सब बोलना है. यह भी बड़ी हैरत की बात है कि यह टीवी चैनल वाले अधिकतर ऐसे ही मुसलमानों को डिबेट में बुलाते हैं कि जिनको आधा अधूरा ज्ञान होता है और फिर वहां आधा अधूरा ज्ञान पेश करना शुरू कर देते हैं जिससे डिबेट कहीं की कहीं चली जाती है और वह डिबेट ना होकर कुछ और ही बन जाती है. इसका बहुत बड़ा असर मुसलमानों की छवि पर पड़ता है और पड़ चुका है. क्योंकि आज हर कोई किसी न किसी तरह से सोशल मीडिया से जुड़ा हुआ है और जब वह सोशल मीडिया के माध्यम से इन चैनलों की डिबेट में इन मुसलमानों को देखता है और पाता है कि यह तो यहां पर अपमानित हो रहे हैं क्योंकि जैसा कि आप पैसे लेकर डिबेट में जाते हैं तो सब सेटिंग होती है तो ऐसे में इन लोगों से क्या उम्मीद की जा सकती है जाहिर है कि जब वह वहां पर डिबेट में शामिल होंगे और उनको ज्ञान नहीं होगा और रकम भी तय कर दी जाएगी डिबेट में शामिल होने की तो फिर इससे वह जिस समुदाय की बात वहां रख रहे हैं उसकी छवि पर असर पड़ना लाजमी है. इसीलिए कई जगहों पर मुसलमानों और उनके धर्म के बारे में जो गलतफहमियां हैं उसको दूर करने के लिए काफी कोशिश भी की गई और जो हमारे हिंदू भाई हैं उनको अपने कार्यक्रमों में आमंत्रित कर बताया भी गया कि इस्लाम किस मामले में क्या कहता है पड़ोसी का क्या अधिकार है. देश के प्रति इस्लाम कितनी मोहब्बत का संदेश देता है यदि इसको पढ़ लिया जाए तो सब कुछ समझ में आ जाएगा लेकिन कुछ लोग इस तरह के बयान देते हैं कि क्यूंकि वो इस्लामी शिक्षा से परिचित नहीं होते और उनको अपनी राजनीतिक रोटियां भी सेकनी होती है तो वह सीधा मुसलमानों पर निशाना लगाने लगते हैं. ऐसे में जरूरी है कि जो आधे अधूरे वाले कुछ जाहिल किस्म के लोग डिबेट में जाते हैं वह वहां पर जाने से परहेज करें और जो काबिल मुसलमान हैं उनको वहां पर जाना चाहिए और जहां तक राजनीतिक नेतृत्व की बात है तो राजनीतिक तौर पर मुसलमानों को यह समझना होगा कि जहां पर उनका विकास हो जहां पर उनको सुविधा मिलती हो वह वहां पर रुख़ करें क्योंकि किसी के बहकावे में आने से आज तक उनका कोई भला नहीं हो सका है भाजपा का खौफ दिखाकर कब तक मुस्लिम समाज को आख़िर गुमराह किया जाता रहेगा. गांव में जो लोग मुस्लिम हितों की बात करते हैं आपने देखा होगा कि चुनाव जीतने के बाद उनकी जुबान से मुस्लिम शब्द तक नहीं निकलता है या अगर वह मुस्लिम शब्द का कभी अपने किसी बयान में जिक्र भी करते हैं तो बहुत देर हो चुकी होती है. अजीब विडंबना है कि जिस समाज के वोट लेकर वह मजबूत होते हैं चाहे वह सत्ता तक नहीं पहुंचते लेकिन मजबूत विपक्ष तो बन ही जाते हैं ऐसे ही नेता सबसे पहले मुसलमानों को नजरअंदाज करते हैं उनका नाम तक लेना तक वो पसंद नहीं करते.

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