शिमला मस्जिद मामले की सच्चाई, हिमांशु कुमार की खास रिपोर्ट
5 सितंबर, 2024 को देवभूमि संघर्ष समिति के तहत लामबंद हुए हिंदुत्व समूहों ने हिमाचल प्रदेश के शिमला और संजौली के चौड़ा मैदान में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया और संजौली मस्जिद के कथित अवैध निर्माण को ध्वस्त करने और राज्य में आने वाले बाहरी लोगों के पंजीकरण के लिए दबाव बनाया।
शिमला में संजौली मस्जिद को लेकर बढ़ते तनाव के बीच स्थानीय मुस्लिम कल्याण समिति ने गुरुवार (12 सितंबर, 2024) को नगर आयुक्त से मस्जिद के अनधिकृत हिस्से को सील करने का आग्रह किया और “अदालत के आदेश के अनुसार इसे ध्वस्त करने” की पेशकश भी की। समिति ने नगर आयुक्त भूपेंद्र अत्री को दिए एक ज्ञापन में अनुरोध किया और कहा कि संजौली में रहने वाले मुसलमान हिमाचल प्रदेश के स्थायी निवासी हैं और यह सद्भाव और भाईचारे को बनाए रखने के लिए कदम उठा रहा है। पिछले दो सप्ताह से कॉर्पोरेट मीडिया में अधूरी और एकतरफा रिपोर्टें प्रकाशित हो रही हैं। कार्यकर्ता हिमांशु कुमार संजौली मस्जिद विवाद की तह तक देश को पहुंचाने के लिए एक व्यक्ति के तौर पर तथ्यान्वेषण के लिए शिमला गए थे। इस मस्जिद विवाद पर एक रिपोर्ट उनकी रिपोर्ट पढ़िए।
महात्मा गांधी ने कहा था कि नौजवानों को गांव में जाकर सेवा करनी चाहिए। उनकी बात मानते हुए मैंने जीवन भर आदिवासियों की विनम्रता के साथ सेवा की है। इस बार ट्राइबल कोऑर्डिनेशन फॉरम ने हिमाचल प्रदेश के सोलन शहर के बाहरी इलाके में होने वाले आदिवासी अधिकार दिवस सम्मलेन में मुझे शामिल होने के लिए बुलाया था। इस सम्मेलन में हिमाचल प्रदेश के किन्नौरा आदिवासियों सहित पांच आदिवासी समूह के प्रतिनिधि शामिल हुए थे। इस सम्मलेन में गुजरात, महाराष्ट्र, ओडिशा, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तामिलनाडू, केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, दमन-दीव, मणिपुर, नागालैंड, मिजोरम और असम से ढाई हज़ार आदिवासी समुदाय के प्रतिनिधि शामिल हुए थे।
इस सम्मलेन के समापन के बाद मैं शिमला चला गया जो सोलन से करीब पचास किलोमीटर की दूरी पर है। वहां संजौली इलाके में बनी एक पुरानी मस्जिद को गिराने की मांग को लेकर आंदोलन किया जा रहा है। मैं शिमला में इस बारे में सच्चाई जानना चाहता था। मैंने शिमला के कुछ वरिष्ठ पत्रकारों और हिमाचल हाईकोर्ट के वकीलों, छात्र नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं से इस बाबत जानकारी हासिल की। मुझे कुछ कागज़ात भी मिले। चूंकि इस मामले में एकतरफा खबरें ही मीडिया में चलाई जा रही हैं इसलिए मुझे लगा कि इस बारे में सच्चाई देश के सामने आनी चाहिए कि क्या है हिमाचल का संजौली मस्जिद विवाद?
संजौली शिमला से सटा इलाका है। यह काफी व्यस्त बाज़ार है। यहां 1940 में मस्जिद के लिए ज़मीन वक्फ़ की गई थी। यहां पर वक्फ़ का अर्थ भी समझ लेना ज़रूरी है। वक्फ़ का मतलब है धर्मार्थ बंदोबस्ती। जब कोई व्यक्ति धार्मिक या सामुदायिक काम के लिए अपनी ज़मीन दान देता है तो उसे हिंदुओं में धर्मा या दान और इस्लाम में वक्फ़ करना कहा जाता है। जैसे हिंदुओं में धर्मार्थ काम के लिए दान दी गई ज़मीन को कोई व्यक्ति अपनी मिलकियत नहीं बना सकता न बेच सकता ठीक उसी तरह वक्फ़ की गई ज़मीन भी न कोई व्यक्ति अपने नाम कर सकता है न बेच सकता है। इस्लाम में मस्जिद हमेशा वक्फ़ की गई ज़मीन पर ही बन सकती है किसी की व्यक्तिगत ज़मीन पर नहीं। वक्फ़ की गई इस प्रकार की ज़मीनों का प्रबंधन एक संस्था करती है जिसे वक्फ़ बोर्ड कहा जाता है। मस्जिद के नाम ज़मीन दान देने का 1940 का वह कागज़ उर्दू में है और इसके साथ संलग्न है। तो इस तरह मस्जिद बाकायदा वैध ज़मीन पर बनी हुई है।
संजौली में साल 1940 में जब ज़मीन मस्जिद के लिए वक्फ़ की गई तब तक भारत में वक्फ़ बोर्ड कानून नहीं बना था। साल 1954 में भारत की संसद ने वक्फ़ बोर्ड एक्ट बनाया। उसके बाद जितनी भी मुस्लिम समाज की सामुदायिक वक्फ़ की गई ज़मीनें थीं जिन पर मस्जिदें मुसाफिरखाने कब्रिस्तान या मदरसे बने थे या खाली भी थीं उन्हें सरकार ने वक्फ बोर्ड के नाम पर चढ़ा दिया जो कि बिलकुल सामान्य कानूनी जायज़ प्रक्रिया थी। साल 1954 का वह सरकारी दस्तावेज़ भी संलग्न है जो यह बताता है कि संजौली मस्जिद की ज़मीन सरकारी रिकॉर्ड में मस्जिद के नाम पर है और वक्फ़ बोर्ड की मिलकियत है।
इस मस्जिद में दूर दूर से आने वाले मुस्लिम समुदाय के लोग ठहरते भी हैं। इसलिए मस्जिद कमेटी ने मस्जिद के ऊपर मुसाफिरों के ठहरने के लिए हॉल बना दिया है। इस हॉल के निर्माण के लिए पिछली भाजपा सरकार ने बाकायदा 12 लाख रुपया सरकारी खजाने से टैक्स पेयर का पैसा भी दिया था।
सब कुछ ठीक ठाक था। अचानक कुछ लोग इकट्ठा होकर मस्जिद को अवैध कह कर इसे गिराने की मांग करने के लिए रैली करने लगे। इस बारे में यहां दो कहानियां बताई जा रही हैं। पहली कहानी यह है कि यहां के एक स्थानीय कांग्रेसी नेता ने सहारनपुर से आये कुछ मुस्लिम मिस्त्रियों से काम कराया लेकिन उनका पूरा पैसा नहीं दिया। इस पर झगड़ा हुआ और कांग्रेसी नेता की पिटाई हो गई। उसने भीड़ को इकट्ठा करके बाहरी मुसलमानों को भगाओ और मस्जिद गिराओ का आंदोलन शुरू किया। दूसरी कहानी कहती है कि मलियाना में एक सैलून में काम करने वाला मुस्लिम कारीगर अपनी दुकान के बाहर खड़ा होकर किसी से मोबाईल फोन पर बात कर रहा था। तभी वहां से एक शराब के नशे में धुत्त नेपाली व्यक्ति ने कहा- धीरे बोलो। इस पर मुस्लिम नाई ने कहा मैं अपनी दुकान के बाहर खड़ा हूं तुम्हें क्या दिक्कत है? इस पर उस नेपाली व्यक्ति ने मुस्लिम सैलून वाले को थप्पड़ मार दिया और झगड़े शुरू हो गए। एक हिंदू व्यक्ति बीच बचाव करने गया तो उसे धक्का लगा वह गिर गया और उसके सिर में चोट आ गई। उसे हिंदुत्ववादी संगठनों ने मुसलमानों द्वारा हमला बताया लेकिन बाद में उस व्यक्ति ने बताया कि मुझे किसी ने जानबूझ कर नहीं मारा था। इस घटना को बहाना बना कर हिंदुत्ववादी सांप्रदायिक संगठनों ने मलियाना से संजौली तक मार्च निकाला और बाहरी मुसलमान भगाओ और संजौली की अवैध मस्जिद गिराओ की मांग करने लगे।
शिमला के अनेकों बुद्धिजीवियों ने बताया की संजौली की मस्जिद को गिराने का अभियान चलाने के साथ साथ भाजपा के इशारे पर पूरे प्रदेश में रैलियां निकाली गई हैं। इसमें कुल्लू, पाओंटा साहिब, सुन्नी, घुमारविन और पालमपुर प्रमुख हैं। पालमपुर में रैली के दौरान मुस्लिम दुकानदारों को परेशान किया गया। इन सांप्रदायिक हिंदुत्ववादी समूहों ने खुद की हरकत की वीडियो और फोटो गर्व के साथ सोशल मीडिया पर शेयर किए। एक महिला सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा कि एक तरफ भाजपा कहती है कि कश्मीर हमारा अभिन्न अंग है वहीं वह कश्मीरियों पर भारत के दूसरे शहरों में हमला करवाती है तो इससे कश्मीरियों को विरोधाभासी संदेश ही जाएगा।
सामाजिक कार्यकर्ताओं और युवा छात्र नेताओं ने मुझे बातचीत के दौरान बताया कि जैसे भाजपा ने उत्तरांचल में एक झूठा मामला बना कर पप्रोला कस्बे के सारे मुस्लिम व्यापारियों को निकाल दिया ठीक उसी तरह सांप्रदायिक तनाव हिमाचल प्रदेश में पैदा किया जा रहा है। हालांकि, संजौली मस्जिद मामले में भाजपा खुद को मुश्किल स्थिति में पाती है क्योंकि उसने मस्जिद के ऊपर मुसाफिर के ठहरने के हॉल के निर्माण के लिए 12 लाख रुपये दिए थे और अपनी पसंद का इमाम भी नियुक्त किया था। नतीजतन, भाजपा सीधे अपनी पार्टी को शामिल करने के बजाय हाशिए के हिंदूवादी समूहों के जरिए से अपने एजेंडे को आगे बढ़ा रही है।
इस पूरे मामले में कांग्रेस नेताओं और हिमाचल की कांग्रेस सरकार की भूमिका बहुत ही आपत्तिजनक और शर्मनाक रही है। कांग्रेसी मंत्री ने सदन में कहा कि बाहर से रोहिंग्या और बंगलादेशी मुसलमान आ गए है और यहां का माहौल खराब कर रहे हैं। जबकि यह पूरी तरह गलत है। न तो हिमाचल में कोई रोहिंग्या है न ही बंगलादेशी है। न ही मुसलमानों के अपराधों में शामिल होने के सबूत हैं। एक स्थानीय हिंदू पत्रकार ने मुझसे कहा कि अगर ये बाहर से आए हुए मुसलमान चोर और अपराधी हैं तो दिखाओ कहां हैं इनके खिलाफ एफआईआर? कहां है मुसलमानों के आपराध में शामिल होने के सरकारी आंकड़े?
इस बीच मुस्लिम समुदाय ने आगे बढ़कर कहा हमें मस्जिद से ज्यादा आपसी भाइचारा प्यारा है। अगर हिंदू भाई चाहते हैं तो हम मस्जिद के ऊपर बना मुसाफिरखाना तोड़ देते हैं। इस बाबत मस्जिद कमेटी और वक्फ़ बोर्ड ने सरकार को यह लिख कर दे दिया है। लेकिन चूंकि मुसाफिरखाना सरकारी पैसे से बना है इसलिए सरकार उसे तोड़ने का आदेश कैसे दे सकती है? शिमला में 25 हज़ार भवन हैं जो मंजूरशुदा ढाई मंज़िल से ज़्यादा बने हैं जिनमें से आठ हज़ार तो चार मंज़िला बने हैं। अगर सरकार सिर्फ संजौली की मस्जिद के ऊपर बने मुसाफिरखाने को गिराने की कार्रवाई करती है तो सभी भवनों पर समान नियम लागू करना पड़ेगा।
शिमला सेब की बड़ी मंडी है। यहां सेब खरीदने सहारनपुर और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुसलमान व्यापारी आते हैं। ये मुस्लिम व्यापारी पूरे ट्रक ख़रीद लेते हैं और बाद में सेब को भारत भर में और दुनिया के अन्य देशों को निर्यात करते हैं। लेकिन इस बार मुसलमान विरोधी इन बवालों की वजह से यूपी से मुस्लिम व्यापारी सेब खरीदने कम आए। इसके कारण बीस किलो की एक पेटी की कीमत पांच सौ से आठ सौ रुपये तक कम हो गई है। रिपोर्ट के अनुसार थियोग में सेब उत्पादकों और आंदोलनकारी नेताओं की एक बैठक भी हुई जिसमें कहा गया की आपके आंदोलन की वजह से हम बर्बाद हो रहे हैं। तो इसके प्रतिक्रिया में कहा गया कि सेब से ज़्यादा धर्म ज़रूरी है।
इस पूरे मामले से साफ़ हो गया है कि एक वैध मस्जिद को गिराने की शरारतपूर्ण मांग को लेकर आंदोलन चलाया गया। पूरे प्रदेश का माहौल सांप्रदायिक बनाया गया। कांग्रेस सरकार ने बेहद लचर रवैया अपनाया है। मुस्लिम समुदाय में डर का माहौल है। लोग पूछ रहे हैं कि कहां हैं मोहब्बत की दुकान वाले? हिमाचल में तो आपकी ही सरकार है फिर मुसलमानों को खौफ के साए में जीने के लिये क्यों मजबूर होना पड़ रहा है?
16 सितंबर को शिमला में सीपीआईएम तथा अन्य जनवादी संगठनों ने एक बैठक करके 27 सितंबर को सांप्रदायिक तत्वों के मंसूबे विफल करने और प्रदेश में सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए एक रैली निकालने का फैसला किया है।