बहुजन समाज पार्टी क्यों हो रही है लगातार कमज़ोर?
शिब्ली रामपुरी
कभी पूर्व सांसद दानिश अली को अचानक पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा देना और कभी इमरान मसूद को बसपा से निष्कासित कर देना और फिर लोकसभा चुनाव के दौरान अचानक से आकाश आनंद से सारी जिम्मेदारियां वापस ले लेना यह वह फैसलें हैं जिन्होंने अचानक से सभी को हैरत में डाल दिया और बसपा सुप्रीमो मायावती द्वारा लिए गए इन फैसलों का कहीं ना कहीं पार्टी को नुकसान भी पहुंचा. पार्टी से जुड़े जो नेता पार्टी की मजबूती के लिए लगातार कार्य कर रहे थे अचानक बसपा सुप्रीमो मायावती ने उनको पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था जिसके बाद से जाहिर सी बात है कि पार्टी को इससे कोई लाभ तो मिलने से रहा.
इसमें कोई दो राय नहीं है कि बसपा सुप्रीमो मायावती का शुमार देश के काबिल नेताओं में होता है लेकिन अब बसपा सुप्रीमो मायावती की तमाम कोशिशो के बावजूद भी बहुजन समाज पार्टी से उसका वोट बैंक लगातार दूर हो रहा है और इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में हाल ही में जो उपचुनाव हुए हैं उसमें बहुजन समाज पार्टी को सिर्फ सात फीसदी वोट ही मिल पाया. उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा उपचुनाव में मिली पराजय के बाद बहुजन समाज पार्टी की सरबराह मायावती ने अब बड़ा फैसला लिया और उन्होंने कहा कि अब हम कोई भी उपचुनाव नहीं लड़ेंगे. बसपा वैसे तो उपचुनाव से हमेशा दूरी ही बनाती रही है लेकिन जैसे जैसे उसका जनाधार कम होता जा रहा था तो उसने उपचुनाव में उतरने का इरादा किया लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला इसलिए अब बसपा सुप्रीमो मायावती ने कोई भी उपचुनाव में पार्टी के प्रत्याशी न उतारने का फैसला किया है. सबसे अहम बात यह भी है कि बहुजन समाज पार्टी द्वारा लोकसभा चुनाव में या फिर मौजूदा विधानसभा उपचुनाव में किसी भी पार्टी से गठबंधन न करने का फैसला भी बसपा पर भारी पड़ता ही दिखाई देता है. यह भी सत्य है कि बसपा के ही कई दिग्गज नेता चाहते हैं कि बहुजन समाज पार्टी का किसी से गठबंधन हो ताकि चुनावी मैदान में पूरी मजबूती के साथ उतरा जा सके और कामयाबी भी हासिल हो. बसपा के युवा नेता और मायावती के भतीजे आकाश आनंद भी शायद गठबंधन करने की हिमायत में हों लेकिन खुले तौर पर वह इस बारे में कुछ नहीं कहते हैं क्योंकि उनको भली भांति मालूम है कि पार्टी के सारे बड़े निर्णय बसपा सुप्रीमो मायावती ही लेती हैं.