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सियासत पर तंज़ या जी हुज़ूरी-यही तो है आज की शायरी !

*सियासत पर तंज़ या जी हुज़ूरी-यही तो है आज की शायरी?*

     शिब्ली रामपुरी

पत्रकारिता में बहुत ज्यादा दिलचस्पी और वक़्त की कमी की वजह से कभी एक अच्छा शायर तो बन नहीं सका लेकिन अदबी खिदमत का शौक़ हमेशा से रहा है और शायरी की काफी समझ भी इसलिए पैदा हुई. दरगाहों पर होने वाले उर्स में डॉक्टर इक़बाल. जिगर मुरादाबादी से लेकर अमीर खुसरो तक के कलाम भी खूब सुने.

    स्थानीय मुशायरों से लेकर ऑल इंडिया मुशायरों तक में जाकर बड़े-बड़े शायरों के कलाम सुनने का भी काफी मौका मिला और बड़े मेयारी कलाम सुने लेकिन मौजूदा वक्त के मुशायरों में जिस तरह की शायरी हो रही है उससे कहीं ना कहीं यह महसूस होता है कि यहां पर सब कुछ है मगर जो शायरी की ज़मीन है जो मेयार है वह मुशायरों से अब तकरीबन गायब हो चुका है.

             कुछ साल पहले की बात होगी कि जब एक ऑल इंडिया मुशायरे में एक नामवर शायर ने एक नए शायर का परिचय यह कहते हुए कराया कि इनको उर्दू नहीं आती मगर यह उर्दू में कलाम लिखते और सुनाते हैं. इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ज्यादातर मुशायरों में क्या हो रहा है.

  हमारे कुछ अदबी दोस्तों को पहले ये एतराज़ था कि मुशायरों में ताली क्यों बजाई जाती है वहां पर तो वाह वाह से शायरों की हौसला अफजाई होनी चाहिए लेकिन अब आप मुशायरों में अगर देखे तो शायर खुद कहते हैं कि आप ताली क्यों नहीं बजा रहे हैं.आज के वक्त में जितने मुशायरे होते हैं उनमें ज्यादातर में यह होता है कि जो शायर हैं बड़े-बड़े शायर हैं वह भी पहले वहां पर मौजूद नेताओं की शान में खूब तारीफों के पुल बांधते हैं और शायरी से ज्यादा वह अपना वक्त तकरीर (भाषण)में लगा देते हैं शायद ऐसा करना उनकी कुछ मजबूरी होती होगी या फिर वो सोचते होंगे कि कहीं मुस्तकबिल में उनको मुशायरों में ना बुलाया गया तो क्या होगा?

     मुशायरों में नेताओं की शान में कुछ कहना बुरा नहीं है लेकिन हर चीज की एक हद होती है और जब उसको पार किया जाने लगेगा तो जिस मकसद के लिए प्रोग्राम किया जा रहा है वह मकसद बहुत दूर चला जाता है. अगर आप यह समझते हैं कि बड़े-बड़े नामवर शायर ही अच्छी शायरी करते हैं या ऑल इंडिया मुशायरों में शिरकत करने वाले शायरों को ही अच्छी शायरी आती है तो यह एक तरह की गलतफहमी ही कही जाएगी क्योंकि स्थानीय स्तर पर जो मुशायरे होते हैं उनमें बहुत अच्छी शायरी की जाती है और स्थानीय शायरों में कई ऐसे शायर होते हैं जो बहुत बड़े लंबे वक्त से शायरी कर रहे होते हैं और उनकी शायरी बहुत मेयारी होती है क्योंकि इसमें उनकी लगन शामिल होती है मगर अफसोस की बात है कि काफी साल मेहनत करने के बावजूद भी उनको वह मक़ाम वो बुलंदी नहीं मिल पाती है इसकी एक बड़ी वजह ये है कि जो बड़े-बड़े शायर हैं वह मुशायरों में अपना वर्चस्व क़ायम रखना जरूरी समझते हैं और इसलिए उभरते शायरों की क़ाबलियत सामने नहीं आ पाती यह तो भला हो सोशल मीडिया का कि जिसने सभी को एक प्लेटफार्म मुहैया करा दिया है और अब उभरते हुए शायर भी सोशल मीडिया के जरिए काफी शोहरत हासिल कर लेते हैं और लोगों को पता चल जाता है कि कहां पर किस तरह की शायरी हो रही है. जो कुछ मैंने अपने इस आर्टिकल में लिखा है उससे कुछ लोग नाराज हो सकते हैं मगर हकीकत यही है कि आज ज्यादातर मुशायरों में जाने के बाद कई बार ऐसा लगने लगता है कि यहां से शायरी तो गायब ही है बाकी सब कुछ है?

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