एकजुटता की कमी से ही होता है अधिकतर पत्रकारों का उत्पीड़न
एकजुटता की कमी से ही होता है अधिकतर पत्रकारों का उत्पीड़न
शिब्ली रामपुरी
राजनीतिक पार्टियों में जिस तरह से पक्ष और विपक्ष होता है इसी तरह के हालात अब पत्रकारिता में भी पैदा होने लगे हैं और यह एक कड़वा सत्य है कि आज एकजुटता की कमी के कारण पत्रकारों को कई बार उत्पीड़न के दौर से गुजरने को मजबूर होना पड़ता है क्योंकि पत्रकारिता में जो बड़े नाम वाले लोग हैं या बड़े बैनर के पत्रकार कहे जाते हैं यदि उनके साथ कुछ होता है तो पत्रकार एकजुट होने में देर नहीं लगती लेकिन यदि किसी छोटे पत्रकार के साथ कोई उत्पीड़न की घटना सामने आती है तो फिर दिग्गज पत्रकार खामोशी इख़्तियार कर लेते हैं.
इस बात को मैं सिर्फ वैसे ही नहीं लिख रहा हूं बल्कि ऐसा कई वरिष्ठ पत्रकारों का मानना है और उनका पत्रकारिता का अनुभव भी है जो यह कहते हैं कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि यदि आप किसी बड़े चैनल या किसी बड़े अखबार के पत्रकार हैं तो आपकी बात अलग है और यदि आप किसी साप्ताहिक या किसी मंझोले छोटे समाचार पत्र के पत्रकार हैं या फिर कम दर्शकों द्वारा देखे जाने वाले किसी टीवी चैनल से जुड़े पत्रकार हैं तो फिर आपके साथ यदि कोई घटना होती है तो उसमें पत्रकार उस तरीके से एकजुट नहीं होंगे और खुद के साथ हुई किसी भी घटना का मुकाबला आपको खुद करना होगा उन हालातो से आपको खुद ही निपटना होगा. वैसे इस मामले में कुछ जगह पर ऐसे दिग्गज पत्रकार भी हैं कि जो संगठनात्मक तौर पर हर पत्रकार की सहायता हेतु तत्पर रहते हैं जैसा कि यूपी के सहारनपुर में ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन के जिला अध्यक्ष आलोक तनेजा कई बार ऐसे पत्रकारों के साथ भी खड़े हुए हैं कि जिनकी ज्यादा पहचान नहीं थी और जब उन पत्रकारों के साथ कोई उत्पीड़न की घटना सामने आई तो आलोक तनेजा ने आगे आकर उनकी सहायता की और उनको उस उत्पीड़न की घटना से मुक्ति दिलाने में अहम रोल निभाया. लेकिन ऐसा सब जगह नहीं है कई जगह ऐसी घटनाएं पत्रकारों के साथ हुई कि जिसमें वह अकेले खड़े रह गए और तमाम तरह के पत्रकारों के संगठनों ने भी खामोशी की चादर ओढ़ ली और उनके बारे में कुछ लिखना/बोलना तो दूर वह उनके साथ एक कदम भी नहीं चले उन बेचारे पत्रकारों को अकेले ही हालातो का मुकाबला करना पड़ा.
हमें आज इस सच्चाई को भी मानना पड़ेगा कि पत्रकारिता का स्तर भी कुछ हद तक गिरा है क्योंकि इस पवित्र कार्य में कुछ ऐसे लोग भी आ गए हैं कि जिनका मकसद पत्रकारिता करना है ही नहीं जिनका उद्देश्य जनता की आवाज उठाना है ही नहीं तो ऐसे लोगों को तो पत्रकार कहा भी नहीं जा सकता लेकिन जो हकीकत में पत्रकारिता कर रहे हैं और ईमानदारी के साथ निष्पक्षता के साथ पत्रकारिता के कार्य को अंजाम देते हैं तो हकीकत में ऐसे पत्रकार बधाई के पात्र हैं वह चाहे किसी भी अखबार से जुड़े हों या किसी भी टीवी चैनल में कार्य करते हों वह पत्रकारिता कर रहे हैं तो फिर यदि उनके साथ कोई घटना होती है तो तमाम पत्रकारों को चाहिए कि वह एकजुटता के साथ उनका भरपूर तरह से साथ दें. पत्रकारिता को और ज्यादा मजबूत करने के लिए सभी पत्रकारों को एकजुट होने की बेहद जरूरत है.