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सबका साथ सबका विकास और मुसलमान

सबका साथ सबका विकास और मुसलमान

शिब्ली रामपुरी

           वर्तमान दौर में यह बात बड़ी अजीब लगती है कि मुसलमानों के सामने जो परेशानियां आ रही हैं जो दिक्कतें आ रही हैं उनका समाधान विपक्षी पार्टियों के जरिए हल करने की अधिक कोशिश रहती है जबकि इन मामलों में सीधी बातचीत सरकार से भी होनी चाहिए.
अभी हाल ही में एक मशहूर टीवी चैनल पर जमीयत उलेमा हिंद के नेता मौलाना महमूद मदनी का इंटरव्यू पेश किया गया जिसमें उन्होंने कई ऐसी बातें कहीं जो हकीकत में काबिले तारीफ हैं.
          मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि सरकार से बातचीत का रास्ता बंद नहीं होना चाहिए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जुड़े एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि देखिए प्रधानमंत्री मोदी की अगर पूरी दुनिया में कहीं भी इज्जत होती है उनका सम्मान होता है तो यह हम सब का सम्मान है क्योंकि वह हमारे प्रधानमंत्री हैं. मौलाना महमूद ने कहा कि जहां तक सरकार की किसी योजना किसी नीति की बात है अगर हमको असहमति व्यक्त करनी है तो हम करेंगे लेकिन इसका यह मतलब नहीं होना चाहिए कि हम सरकार विरोधी हैं. जहां तक प्रशंसा की बात है तो जो काम सरकार अच्छे करेगी तो हम खुले दिल से उसका स्वागत करेंगे और करते भी हैं हमने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 10 साल में कई नीतियों का खुले दिल से समर्थन किया है उनकी तारीफ की है.

           इसमें कोई दो राय नहीं है कि मौजूदा वक्त में मुसलमानों के सामने कई ऐसी समस्याएं आई हैं कि जिनकी वजह से उनको बहुत सारी परेशानियों से रूबरू होना पड़ा है और पड़ रहा है. यह बात भी अपनी जगह सही है कि जिस तरह से सरकार को इन मामलों में हस्तक्षेप करके मुसलमानों में आत्मविश्वास पैदा करने की कोशिश करनी चाहिए वैसा कम ही होता दिखाई देता है. सरकार की ओर से मुसलमानों की तरक्की और खुशहाली के लिए बड़ी-बड़ी बातें भी की जाती हैं और कई ऐसी योजनाएं सरकार द्वारा चलाई भी गई हैं कि जिनमें सबके साथ मुसलमानों का भी विकास हो रहा है उन योजनाओं का लाभ मुसलमानों को भी मिल रहा है यह बहुत ही अच्छी बात है लेकिन जहां तक मुसलमानों के सामने जो परेशानियां आ रही हैं उनके बारे में जहां मुस्लिम रहनुमाओं- उलेमा और मुसलमानों के सहारे पॉलिटिक्स करने वाले नेताओं की बात है तो उनको सरकार में बैठे जिम्मेदार लोगों से मुलाकात करनी चाहिए उनके सामने समस्याएं रखनी चाहिएं मगर अफसोस की बात है कि ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा है.

         जहां तक विपक्षी पार्टियों की बात है तो लोकसभा चुनाव हो या कोई और चुनाव इनमें वह मुसलमानों के वोट तो हासिल कर लेती हैं लेकिन क्या वह मुसलमानों के मुद्दे पर गंभीर नजर आती हैं? ऐसे में सरकार से बातचीत के दरवाजे बंद नहीं किए जाने चाहिएं और विपक्षी पार्टियों को भी अपनी जिम्मेदारी को समझने की जरूरत है कि जिस समुदाय के वोट उन्होंने तरक्की और खुशहाली के ख्वाब दिखाकर लिए हैं क्या वह उस जिम्मेदारी को पूरी तरह निभा पा रहे हैं.

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