उत्तराखंड

समान नागरिक संहिता के विरोध में आया उत्तराखंड नुमाइंदा ग्रुप

देहरादून (शाइना परवीन) उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू होने से पहले ही इसका विरोध शुरू हो गया है। उत्तराखंड नुमाइंदा ग्रुप ने प्रदेश सरकार पर राजनीतिक उद्देश्यों के लिए जनता को भ्रमित करने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि जनता की सामाजिक और आर्थिक आवश्यकताओं को नजरंदाज कर समान नागरिक संहिता को लागू करना ठीक नहीं है। उन्होंने उत्तराखंड सरकार द्वारा गठित समान नागरिक संहिता की विशेषज्ञ कमेटी की कार्यप्रणाली और उसके द्वारा आमंत्रित सुझाव और अन्य कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि इस समान नागरिक संहिता का मसौदा जनता को जल्द ही उपलब्ध कराना चाहिए ताकि जनता को पता चल सके कि राज्य की अवधारणा के विपरीत रोजगार, पलायन और भू कानून जैसे मसलों की अनदेखी की जा रही है। इसीलिए राज्य की अधिकतम राजनीतिक पार्टियों ने कमेटी द्वारा बुलाई गई मीटिंग का विरोध दर्ज करवाया है और कहा है कि जब तक कमेटी यूसीसी ड्राफ्ट सार्वजनिक नहीं करती हम सरकार की मंशा पर सवाल खड़ा करते रहेंगे।

पत्रकार वार्ता में समाजसेवी खुर्शीद सिद्दीकी ने कहां थी पूरे देश में कहीं समान नागरिक संहिता लागू नहीं सिर्फ गोवा में है वह उस वक्त से है जब गोवा पुर्तगाल के अधीन था उन्होंने बताया था की किस प्रकार समान नागरिक संहिता भारत के नागरिकों को नुकसान दे उन्होंने समान नागरिक संहिता के दुष्प्रभाव पर प्रकाश डाला
उत्तराखंड बार काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता रजिया बैग ने उत्तरांचल प्रेस क्लब में उत्तरांचल नुमाइंदा ग्रुप द्वारा आयोजित प्रेस वार्ता में कहा कि राज्य सरकार द्वारा गठित ड्राफ्ट कमेटी में कानून विशेषज्ञों को शामिल किया जाना चाहिए था लेकिन सरकार ने किसी कानून विशेषक को मसौदा समिति में शामिल नहीं किया गया और क्या मसौदा तैयार किया जा रहा है यह भी जनता के बीच में नहीं रखा है जबकि जनता से सुझाव मांगने की बात की जा रही है जब तक सरकार की मंशा सामने नहीं होगी कोई क्या अपनी राय दे सकता है सरकार अपने ही कुछ समर्थकों को बुलाकर जनता की राय का ढिंढोरा पीट रही है जब तक इसका ड्राफ्ट सर्वजनिक नहीं किया जाता तब तक उस पर कोई अपनी राय देना कैसे मुमकिन हो सकता है उन्होंने कहा कि जनता की अपनी बहुत समस्याएं हैं जिन उद्देश्यों के लिए उत्तराखंड की स्थापना की गई वह मुद्दे आज आज भी मौजूद है सरकार जनता की समस्याओं का समाधान करने के बजाएं राजनीतिक लाभ के लिए अनावश्यक समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दे उठा रही है

एडवोकेट रजिया बेगम ने कहा कि दो हजार अट्ठारह में लॉ कमीशन जिसकी अध्यक्षता जस्टिस चौहान कर रहे थे साफ कर दिया था कि समान नागरिक संहिता की देश को कोई जरूरत नहीं है.
इस मौके पर शहर काजी मौलाना मोहम्मद अहमद कासमी, मुफ्ती रईस अहमद, खुर्शीद सिद्दीकी, लताफत हुसैन याकूब सिद्दीकी तौसीफ खान आसिफ हुसैन और फरहान फारुकी आदि मौजूद रहे

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