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केजरीवाल के इस्तीफ़े की पेशकश राजनीति का मास्टरस्ट्रोक या जोखिम?

केजरीवाल के इस्तीफ़े की पेशकश राजनीति का मास्टरस्ट्रोक या जोखिम?

(शिब्ली रामपुरी)
गोल्डन टाइम्स
शिब्ली रामपुरी

      दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की जनता के सामने जल्दी ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने की जो बात कही है उसके कई सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं. आम आदमी पार्टी के नेता और सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि मैं दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने जा रहा हूं और कुछ ही महीनों बाद चुनाव होने वाले हैं अगर दिल्ली की जनता को लगता है कि मैं ईमानदार हूं तो मुझे वोट देना और मैं अगर आपकी नजर में गुनहगार हूं तो मुझे चुनाव में वोट मत देना.
दिल्ली की मुख्यमंत्री की कुर्सी से अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा देने की पूरी तैयारी कर ली है और इसका ऐलान भी उन्होंने कर दिया है ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि दिल्ली का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा तो वहीं अरविंद केजरीवाल ने जिस तरह से अपने इस्तीफे की पेशकश की और कहा कि अगर मैं ईमानदार हूं तो मुझे वोट दे देना इससे सियासत में खलबली का माहौल सा पैदा हो गया है विशेष तौर पर दिल्ली की सियासत में अरविंद केजरीवाल के फैसले को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है और समझा जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल ने यह फैसला लेकर एक तरह से मास्टरस्ट्रोक कार्ड खेला है हालांकि अरविंद केजरीवाल का यह क़दम जोखिम भरा भी साबित हो सकता है. काबिले गौर हो कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर जो घोटाले के आरोप लगे हैं जिसके तहत उनको जेल जाना पड़ा और फिलहाल वह जमानत पर हैं तो विपक्ष की ओर से अरविंद केजरीवाल पर लगातार इस्तीफा दिए जाने की मांग भी उठ रही थी. अरविंद केजरीवाल लगातार जनता के बीच जाकर खुद को निर्दोष बता रहे हैं और कह रहे हैं कि वह सियासत का शिकार हुए हैं.हालांकि बीजेपी ने केजरीवाल की घोषणा को नाटक करार दिया है और कहा है कि जब भी दिल्ली में चुनाव होंगे, बीजेपी जीतेगी. अब यह देखना दिलचस्प रहेगा कि अरविंद केजरीवाल का अगला सियासी क़दम क्या होता है और दिल्ली की जनता क्या अभी भी उनके साथ है या फिर जनता का विश्वास अरविंद केजरीवाल पर कम हुआ है वैसे विधानसभा चुनाव से पहले इसे एक सियासी रणनीति के तौर पर भी देखा जा रहा है. यहां यह बात भी काबिले गौर हो कि इसी साल संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में दिल्ली में आम आदमी पार्टी को एक भी सीट पर कामयाबी नहीं मिली थी.

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