राष्ट्रीय

स्वतंत्रता दिवस पर विशेष: आमजन के लिए आज भी बेमायने है आजादी!

स्वतंत्रता दिवस पर विशेष

आमजन के लिए आज भी बेमायने है आजादी!

डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट

                    वास्तव में आजादी की कीमत पिंजरे में कैद वह पक्षी ही जान सकता है, जिसके पंख फड़फड़ाकर पिंजरे से टकरा टूट जाते हैं, जो पिंजरे की कैद रूपी गुलामी से आजाद होने के लिए लगातार तड़पता है। उसकी चीत्कार और संघर्ष उन आम लोगों का प्रतीक कहा जा सकता है, जिनको 15 अगस्त 1947 से पहले अंग्रेज सरकार तानाशाही के चाबुक से रहरहकर घायल कर रही थी।यह वह दौर था जब भारतीयों को गुलाम बनाकर उनका तरह तरह से उत्पीड़न किया जा रहा था।  अंग्रेजो की क्रूरता और नरसंहार के इस खेल में  मानवता भी थरथरा उठती थी।भारतीयों के अंतरमन से आवाज आ रही थी कि आखिर कब तक गुलामी का दंश झेलते रहेंगे? कब तक अंग्रेजों के जुल्म को सहते रहेंगे?  देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए आजादी के तराने गाये जाने लगे,

ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी कसम,
तेरी राहों में जां तक लुटा जाएंगे,
 दलितो-वंचितो-पीड़ितो-शोषितो के मायूस चेहरे पर आजादी की चमक का आगाज कर रही थीं । देश मे आजादी मिलते ही लोकतंत्र की नींव रखी गई और देश का प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को चुना गया।
सरदार वल्लभभाई पटेल के प्रयासों से रियासतों का एकीकरण हुआ और डॉ. भीमराव अंबडेकर के प्रयासों ने देश का संविधान अल्प समय में तैयार कर सरकार चलाने की विधि व कानून व्यवस्था प्रावधान लागू किये गए। नई पीढ़ी की शिक्षा के लिए शिक्षामंत्री बनाया गया और हर गांव में पाठशालाएं खोलने के लिए स्वीकृति प्रस्ताव पारित किए गए।  यह सब परतंत्रता की बेड़ियों से पड़े जिस्म पर घावों के लिए मरहम की तरह था।  लेकिन आजादी के कुछ सालों बाद ही देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चयनित हुए जनप्रतिनिधियों की मानसिकता देशहित न रहकर स्वहित होने लगी।  राजनेताओं की स्वहित मानसिकता और लालची रवैये ने राष्ट्रभक्ति की समस्त सीमाएं तोड़ दीं।
पहले गोरे, कालों को लूट रहे थे, तो अब काले ही कालों को लूटने  लगे। विकास कार्यो को परिभाषित करने के लिए जनकल्याणकारी योजनाओं को लागू करने के साथ ही अलमारी में फाइलों की संख्या बढ़ने लगी।  जिन राष्ट्रभक्तो और कवियों ने जेल की दीवारों पर  ‘वंदेमातरम्’ लिखकर आजादी की इबारत लिखी थी, उनकी पीठ पर पड़े कोड़ों की मार से निकले फोड़ों के फूटने पर आए लहू के कतरे उपेक्षा की कहानी बयां कर रहे थे। लाठी के दम पर आजादी की मशाल जलाने वाले गांधी का अपमान कर गोड़से को आराध्य माना जाने लगा। देश के युवाओं की दिशा पश्चिमीकरण के कारण भ्रमित हो गई। सरकारी कार्यालयों में लगी भ्रष्टाचार की दीमक ने अधिकारियों और कर्मचारियों के ईमान को नोंच डाला। बेरोजगारी ने नौकरियों और उच्च शिक्षा के प्रति आमजन का मोहभंग कर दिया।आए दिन नए-नए घोटालों और अपराधिक ता ने जनप्रतिनिधियों की पोल खोलकर रख दी। ऐसी बदहाल आजादी की कल्पना महात्मा गांधी ने तो कभी नही की थी।  जिस देश में स्कूलों से ज्यादा शराब के ठेके नजर आते हो , जहां पैसों वालों के लिए कानून उनकी जेब मे हो और गरीबों के लिए केवल शोषण हो। जहां फुटपाथों पर मासूमों का बसेरा हो और अमीरों की गाड़ियों का पहिया जिनकी मौत का कारण बनता हो। यहां अमीरों के लिए  ही अच्छे दिन है ,बाकी गरीबों की आंखों में तो आज भी पानी ही है।
 सवाल उठता है कि क्या हम हर 15 अगस्त को यूं ही समस्याओं का जिक्र करते रहेंगे या फिर खुद भी देश के लिए कुछ करने के लिए खड़े होंगे? आजादी की भौतिकता तक सीमित न रहकर सोच और मन से आजाद होने की आज सबसे बड़ी जरूरत है। आजादी का मतलब केवल अधिकारों की मांग के नाम पर उग्र प्रदर्शन करना भर नहीं है, बल्कि कर्तव्यों के प्रति भी सकारात्मक भूमिका निभाना है। नेताओं को कोसना ही काफी नहीं है, बल्कि  ईमानदार व्यक्ति को नेता बनाने के लिए सक्रिय मतदाता बनकर चुनाव करना भी है। आज देश का करोड़ों रुपया ‘नमामि गंगे’ और ‘स्वच्छ भारत’ अभियान पर खर्च हो रहा है?लेकिन फिर भी न गंगा साफ हो पाई और न ही स्वच्छता कायम रख पाए।इस दिन हर भारतवासी अपने देश की आजादी के शहीदों व  स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को याद करता है, जिनके खून पसीने और संघर्ष से हमें आजादी नसीब हुई। स्वतंत्रता के मायने हर नागरिक के लिए अलग-अलग होते हैं, कोई व्यक्ति स्वतंत्रता को अपने लिए खुली छूट मानता है, जिसमे वह अपनी मर्जी का कुछ भी कर सके, चाहे वह गलत हो या सही हो। लेकिन स्वतंत्रता सिर्फ अच्छी चीजों के लिए होती है। बुरी चीजों के लिए स्वतंत्रता अभिशाप बन जाती है। इसलिए स्वतंत्रता के मायने तभी हैं जब स्वतंत्रता में मर्यादा, चरित्र और समर्पण का भाव हो। अगर स्वतंत्रता में मर्यादा, चरित्र और समर्पण ही नहीं है तो यह आजादी नहीं बल्कि एक प्रकार का छुट्टापन होता है। जिस पर कोई भी लगाम नहीं होती। यही छुट्टापन देश और समाज में बलात्कार, छेड़खानी, हत्या और मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं के अंजाम के लिए जिम्मेदार होता है। स्वतंत्रता दिवस के दिन देश के युवा पतंगें उड़ा कर आजादी का जश्न मनाते हैं। हवा में लहराती पतंगें संदेश देती हैं कि हम आजाद देश के निवासी हैं। लेकिन क्या तिरंगा फहराकर या पतंग उड़ाकर आजादी का अहसास हो जाता है? क्या भारत में हर किसी को आजादी से जीने का हक मिल पाया है? हमें आजादी मिली, उसका हमने क्या सदुपयोग किया। लोग पेड़ों को काट रहे हैं। बालिका भ्रूण की हत्या हो रही है। सड़कों पर महिलाओं पर अत्याचार होते हैं। अकेले रह रहे बुजुर्गों की हत्या कर दी जाती है। शराब पीकर लोग देश में सड़क हादसों को अंजाम देते हैं, और दूसरे बेगुनाह लोगों को मार देते हैं। ये कैसी आजादी है, जहां एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के अधिकारों का हनन कर रहा है।
आज भी हमारे आजाद भारत देश में बाल अधिकारों का हनन हो रहा है। छोटे-छोटे बच्चे स्कूल जाने की उम्र में काम करते दिख जाते हैं। आज बाल मजदूरी समाज पर कलंक है। इसके खात्मे के लिए सरकारों और समाज को मिलकर काम करना होगा। साथ ही साथ बाल मजदूरी पर पूर्णतया रोक लगानी चाहिए। बच्चों के उत्थान और उनके अधिकारों के लिए अनेक योजनाओं का प्रारंभ किया जाना चाहिए। जिससे बच्चों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव दिखे और शिक्षा का अधिकार भी सभी बच्चों के लिए अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए। गरीबी दूर करने वाले सभी व्यवहारिक उपाय उपयोग में लाए जाने चाहिए। बालश्रम की समस्या का समाधान तभी होगा जब हर बच्चे के पास उसका अधिकार पहुँच जाएगा। इसके लिए जो बच्चे अपने अधिकारों से वंचित हैं, उनके अधिकार उनको दिलाने के लिये समाज और देश को सामूहिक प्रयास करने होंगेआज भी देश में महिलाओं के मौलिक अधिकार चाहे समानता का अधिकार हो, चाहे स्वतंत्रता का अधिकार हो, चाहे धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार हो, चाहे शिक्षा और संस्कृति सम्बन्धी अधिकार हो; समाज द्वारा नारियों के हर अधिकार को छीना जाता है या उस पर बंदिशे लगायी जाती हैं, जोकि एक स्वतंत्र देश के नवनिर्माण के लिए शुभ संकेत नहीं है।भारत में अंग्रेजों की हुकूमत साल 1858 में शुरू हुई और 1947 तक चली. इससे पहले, 1757 से लेकर 1857 तक भारत पर ब्रिटेन की ईस्ट इंडिया कंपनी का कंट्रोल था। देश के वीर स्वतंत्रता सेनानियों के साहस और बलिदान के आगे आखिरकार अंग्रेजों ने घुटने टेक दिए और करीब 200 साल तक अंग्रेजों की गुलामी करने के बाद भारत को 15 अगस्त, 1947 के दिन आजादी मिली।आज जरूरत इस आजादी को बनाये रखने की है।(लेखक अमर शहीद जगदीश वत्स के भांजे व वरिष्ठ पत्रकार है)

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